शनिवार, 6 जून 2009

चुनाव में मीडिया की भूमिका का पोस्टमार्टम.

राज्यसभा के चुनाव में उन्हें वोट देने के लिए मैंने पैसे नही मांगे थे ,
मगर मेरी ख़बर छापने के लिए वो पैसे मांग रहे है।


चुनाव के दौरान यु.पी. के एक अख़बार मालिक के बारे में ये बात लखनऊ से भाजपा के प्रत्याशी लालजी टंडन ने बकायदा एक प्रेस कांफ्रेंस में कही थी।इसे अपने संबोधन में दोहराते हुए वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रभाष जोशी ने इस चुनाव में मीडिया के कारोबारी स्वरुप की जमकर धज्जिया उड़ाई और उसकी कारगुजारियों का कच्चा चिठ्ठा श्रोताओं के सामने पेश किया।दूसरी तरफ़ देश के एक और वरिष्ठ पत्रकार श्री बी.जी.वर्गीज़ ने भी मीडिया के इस अतिरेक पूर्ण आचरण की तीखी निंदा की।

ये दोनों धुरंधर पत्रकार चुनाव के नतीजे आने के एक दिन पहले यानी १५ मई को इंदौर की एक सामाजिक संस्था "सम सामयिक अध्ययन केन्द्र' द्वारा आयोजित एक राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। "चुनाव में मीडिया की बदलती भूमिका" विषय पर हुई इस संगोष्ठी में इन दोनों वरिष्ठ पत्रकारों ने इंदौर के युवा पत्रकार सुबोध खंडेलवाल द्वारा इसी विषय पर लिखी गई एक रिपोर्ट का विमोचन भी किया ।

संगोष्ठी को सबसे पहले प्रभाष जी ने संबोधित किया। अपनी लेखन शैली के लिए मशहूर प्रभाष जी ने लगभग ४० मिनिट के उद्बोधन में मीडिया की धंधेबाजी की खूब ख़बर ली. मीडिया के इस दागी चेहरे को बेनकाब करते हुए उन्होंने कहा कि इस बार देश के पाठको ने अखबारों में चुनाव से सम्बंधित जो भी खबरे पढी उनमे से ज़्यादातर किसी न किसी उम्मीद्वार के पैसे के प्रभाव में छापी गई थी, और यदि किसी के खिलाफ ख़बर छपी तो वो इसलिए छपी क्योकि उसने विज्ञापन को खबरों के रुप में छापने का पेकेज नही लिया था.

उन्होंने कहा कि इस बार लखनऊ से भाजपा के प्रत्याशी लालजी टंडन ने एक प्रेस कांफ्रेंस आयोजित करके ये कहा कि इस चुनाव में मेरी लड़ाई सिर्फ़ मैदान में उतरे प्रत्याशियों से नही बल्कि एक प्रत्याशी और उसके साथ इन इन अखबारों से भी है क्योकि उस प्रत्याशी ने सभी अखबारों के पैकेज खरीद लिए है लिहाजा सारे अख़बार रोज़ उस प्रत्याशी की कई खबरे छाप रहे है जबकि मेरी एक भी ख़बर नही दी जा रही है। टंडन ने उसी प्रेस कांफ्रेंस में एक अखबार के मालिक - जिन्हें राज्यसभा का सदस्य चुना गया था -का नाम लेकर कहा कि राज्यसभा के चुनाव में मैंने भी उन्हें वोट दिया था मगर मैंने उसके पैसे नही मांगे थे, मगर अब वे चुनाव में मेरी ख़बर छपने के पैसे मांग रहे है।

इन दोनों पत्रकारों को सुनने के लिए इंदौर की हिन्दी साहित्य समिती सभाग्रह में सैकडो प्रबुद्धजन उपस्थित थे लेकिन लगभग २५ लाख की आबादी वाले इस शहर के अधिकाँश लोगो तक इनकी बात नही पहुच पायी क्योकि शाम के दो और सुबह के एक अख़बार को छोड़कर ज़्यादातर अखबारों ने इस आयोजन की ख़बर को न छापना ही बेहतर समझा। लोकल चैनल्स ने ज़रूर थोड़ी हिम्मत दिखाई मगर उन्होंने भी इस ख़बर को उतनी तवज्जो नही दी।शायद इस आयोजन की प्रेस विज्ञप्ति पड़ते वक्त उनको भी कोई अपराध बोध सता रहा था।


इसके पहले सुबोध खंडेलवाल ने चुनाव में मीडिया की बदलती भुमिका पर आधारित रिपोर्ट के बारे में जानकारी प्रस्तुत की. उन्होंने कहा कि इस चुनाव में कुछ अपवादो को छोडकर देश का मीडिया सिक्के से चलाने वाले पब्लिक फोन की तरह नजर आया, जिसमे जो व्यक्ति सिक्का डालेगा उसीकी आवाज़ सामने वाले छोर तक पहुचेगी. यदि किसी ने इसमें सिक्का नही डाला है तो तो फिर चाहे उसकी आवाज़ कितनी भी बुलंद हो उसे दबा दिया जायेगा.
इस संगोष्ठी में प्रभात ख़बर के सम्पादक श्री हरिवंशजी और माखनलाल पत्रकारिता वि.वि.के श्री अच्युतानंदजी मिश्र भी भाग लेने वाले थे मगर वे इसमे शामिल न हो सके।

इस ब्लॉग पर आप प्रभाषजी और श्री वर्गीज़ के भाषण का वीडियो भी देख और सुन सकते है।


प्रभाष जी के भाषण के वीडियो की पहली कड़ी यहाँ है -

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